Tuesday, February 8, 2011
दहशत का रंग
कोई तराजू नहीं ढंग का ।
सब में चक्कर है पासँग* का ।
दहशत को भी रंग दे दिया
तब से भय हो गया रंग का ।
चलो अकेले साथ स्वयं के
बहम छोड़कर साथ-संग का ।
क्यूँ इतना कमज़ोर हो गया
रिश्ता मंजे औ' पतंग का ?
मन का मधुबन ठूँठ पड़ा जब
तब क्यूँ नाटक फाग-चंग का ?
७-२-२०११
बसंत पंचमी की बधाइयाँ
* तराजू का तोल बराबर करने के लिए रखा गया वज़न, पत्थर
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
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