Tuesday, January 4, 2011
सूरज जैसे ढलते रिश्ते
सूरज जैसे ढलते रिश्ते ।
फिर बन चाँद निकलते रिश्ते ।
गूंगे के गुड़ जैसे मीठे
धीरे-धीरे घुलते रिश्ते ।
उँगली पकड़े बच्चे जैसे
सँग-सँग बढ़ते-पलते रिश्ते ।
कलियों की पलकों पर लेटे
फूलों जैसे खुलते रिश्ते ।
नींद में सपने, साँस में खुशबू
संग लहू के बहते रिश्ते ।
लाख ज़माना बदल गया हो
फिर भी नहीं बदलते रिश्ते ।
३०-११-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
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