Thursday, January 6, 2011
आँखों में उजियाले हों
चाहे रस्ते काले हों |
आँखों में उजियाले हों |
नहीं बुझे मन की ज्वाला
लाख जुबाँ पर ताले हों |
शंका के तूफानों में
हाथ हाथ में डाले हों |
चक्रव्यूह में घुसने के
रस्ते देखे-भाले हों |
पेकिंग चाहे उनकी हो
नुस्खे अपने वाले हों |
दौलत की इस भगदड़ में
कुछ पल 'बैठे ठाले' हों |
मक्कारी पहचान मगर
सपने भोले-भाले हों |
एक दिया भर रखने को
दीवारों में आले हों |
३-१-२०११
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
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1 comment:
नमस्कार अँकल,
सबसे पहले आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपकी ग़ज़ल पढ़कर आपके स्वस्थ होने की खबर सुकून देती है। लिखते रहें।
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