Saturday, November 27, 2010
बिहार में तीर चल गया
तीर चल गया
( बिहार चुनाव २०१० में राबड़ी, साधु यादव, राम चन्द्र पासवान, राहुल सभी फेल- २४-११ २०१० )
बीवी, साले, अनुज सब सिद्ध हुए बेकार |
अलग मूड में दीखता है अब राज्य बिहार |
है अब राज्य बिहार, हाथ ने साथ न पाया |
लालटेन, झुग्गी सब का हो गया सफाया |
'जोशी' बिना धनुष के ही वह 'तीर' चल गया |
पासवान, लालू, राहुल को फ्लेट कर गया |
नीतीश को नसीहत
( चुनाव २०१० में नीतीश की नेतृत्व में एन.डी.ए. को भयंकर बहुमत- २४-११-१० )
हाथ, लालटेन, झोंपड़ी सब को दिया उखाड़ |
मतदाता ने दे दिया तुमको छप्पर फाड़ |
तुमको छप्पर फाड़, फाड़ छप्पर जो देता |
काम ना करो फाड़ पेट वापिस ले लेता |
जोशी बातें नहीं तनिक सेवा भी करना |
शेर बनाया वही बना दे चूहा वरना |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
पाकर खोने का डर होता
धरती होती, अम्बर होता |
तुम होते तो घर, घर होता |
चाहे कहने को कतरा हूँ
लेकिन एक समंदर होता |
दीवारों पर गुमसुम लटकी
तस्वीरों में भी स्वर होता |
सपने सच होने का जादू
इस जीवन में अक्सर होता |
पाने का क्या जश्न मनाना
पाकर खोने का डर होता |
इंसानी रिश्ते होते फिर
भले न मस्जिद-मंदिर होता |
मैं तो उसके अंदर हूँ ही
काश! वो मेरे अंदर होता |
२२-११-२०१०
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Monday, November 15, 2010
सेवक या राजा
( २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फँसे राजा- ११-११-२०१० )
सेवक श्रम करता नहीं, राजा करे न कष्ट ।
भूखे ही रह जाएँगे अगर नहीं हों भ्रष्ट ।
अगर नहीं हों भ्रष्ट, मिले दो रोटी सूखी ।
लगे तड़पने आत्मा काजू-व्हिस्की-भूखी ।
कह जोशी कविराय देश का बजना बाजा ।
फिर चाहे आए कोई सेवक या राजा ।
--
( सोनिया गाँधी के बारे में सुदर्शन की टिप्पणी-१०-११-१० )
कोई भी करता नहीं कोई ढंग की बात |
पाँव कब्र में पड़े हैं फिर भी घूँसा-लात |
फिर भी घूँसा-लात, जीभ से तीर चलाएँ |
लटपट बूढ़ी जीभ किसी को कुछ कह जाएँ |
कह जोशी कविराय नाम है भले सुदर्शन |
मगर हो रहा शब्दों से तो तुच्छ प्रदर्शन |
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ओबामा की मज़बूरी
ओबामा बाज़ार में बेच रहे सामान |
कोई कुछ तो खरीदो, भला करे भगवान |
भली करे भगवान, विकट मंदी, महँगाई |
डूबी अर्थव्यवस्था, आफत भारी आई |
कह जोशी कविराय साफ स्वारथ का चक्कर |
तभी झरे है मुँह से बातों की शक्कर |
८-११-२०१०
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Wednesday, November 3, 2010
ज्योति कलश छलके - हैप्पी दिवाली
[ ज्योति कलश छलके - 'भाभी की चूड़ियाँ ' फ़िल्म का सुप्रसिद्ध चित्र-पट-गीत ( पं नरेंद्र शर्मा )की तर्ज़ पर आधारित ]
दीवाली पर जेब कट गई |
शोर, धुएँ से फिज़ाँ अट गई |
और पटाखों के सड़कों पर
फैले हैं छिलके | ज्योति कलश छलके |
सबके खाली टेंट हो गए |
नोट गिफ्ट की भेंट हो गए |
संबंधों पर जो खर्चे हैं
वे प्राफिट कल के | ज्योति कलश छलके |
कैसी अंधी दौड़ चल रही |
सबमें होड़ा-होड़ चल रही |
आँख मूँदकर निबल जनों से
पीछे धन, बल के | ज्योति कलश छलके |
कोई काम न करना चाहे |
माल मुफ्त का चरना चाहे |
धर्म-कर्म सब हुआ उपेक्षित
सब आशिक फल के | ज्योतिकलश छलके |
निर्धन जन से आँख चुराई |
धनिकों को दे रहे बधाई |
ऊँची, भारी बातें करते
पर मन के हलके | ज्योतिकलश छलके |
घर आगे गोबरधन रचते |
गोपालन से बचते फिरते |
गोपाष्टमी खिलाया गुड़
फिर खा कागज, छिलके | ज्योति कलश छलके |
रूप चतुर्दशी देह निहारें |
मन की कालिख नहीं उतारें |
भगत नोट के नहा रहे हैं
उबटन मल-मल के | ज्योति कलश छलके |
खेलें जुआ, सत्य ना बोले |
करें मिलावट औ' कम तोलें |
दर्पण में मुँह देख-देखकर
मुड़ -मुड़ कर मुळकें | ज्योति कलश छलके |
दो नंबर की लक्ष्मी आई |
पर इसमें आनंद न भाई |
सच्ची लक्ष्मी तब प्रकटे
जब श्रम सीकर झलकें | ज्योति कलश छलके |
मुख से बोलें राम-राम सा |
पर स्वारथ से सदा काम सा |
राम मिलेंगे धर्म-न्याय से
वन-वन चल-चल के | ज्योति कलश छलके |
मूल गीत सुनाने के लिए क्लिक करें
३०-१०-२०१०
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