Monday, April 13, 2009

लोकतंत्र का सर्कस - जय हो


डेमोक्रेसी वाले नीले आसमानों के तले
नेता और लाला जी बस दो ही तो फले ।
जय हो ।

सावन में बाढ़ आए या पड़े सूखा
हर हालत जनसेवक तो कमाई करे ।
जय हो ।

फूट डालें जात, धर्म, प्रान्त के लिए
राष्ट्रीय एकता की बातें पर करें ।
जय हो ।

हमला हो, बाढ़, सूखा, बेकारी बढ़े
नेता सब बचे रहें, जनता पर मरे ।
जय हो ।

बूढ़े हो गए है पर मन न भरा
चुनावों में अब बेटे, पोते हैं खड़े ।
जय हो ।

एक दूसरे को सब चोर कह रहे
ये ही मौसेरे भाई फिर गठबंधन करें ।
जय हो ।

९ मार्च २००९
(बतर्ज़ - 'जय हो' - फ़िल्म स्लमडोग मिलिनिएर )

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Sunday, April 12, 2009

लोकतंत्र का सर्कस - भोजन का अधिकार


(१) मुहब्बत जिंदाबाद
(मटुकनाथ ने 'भारतीय मुहब्बत पार्टी' बनायी)

अगर मुहब्बत पार्टी सत्ता में आ जाय ।
प्रेमी जन को कोई भी सके न आँख दिखाय ॥
सके न आँख दिखाय, प्रेम में टाँग अड़ाए ।
पुलिस पकड़ ले जाय, जेल की रोटी खाए ॥
जोशी संसद में न समय बर्बाद करेंगें ।
'बुद्ध-जयन्ती पार्क ' सभी आबाद करेंगें ॥
(बुद्ध-जयन्ती पार्क दिल्ली का एक कुख्यात मिलन स्थल है ।)

(२) भोजन का अधिकार
( कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र)

कांग्रेस घोषित करे 'गर फिर आयी सरकार ।
तो जनता को मिलेगा भोजन का अधिकार ॥
भोजन का अधिकार, जहाँ जी चाहे जाओ ।
मनपसंद होटल में जी भर खाना खाओ ॥
जोशी होटल मालिक बोले-पैसे धर दे ।
कहना-मनमोहन के खाते क्रेडिट कर दे ॥

२४ मार्च २००९

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नैनो कार - घर की शोभा


रोटी, पानी, नौकरी ना कुछ भी दरकार ।
लो बाज़ार में आ गई सबसे सस्ती कार ॥
सबसे सस्ती कर, नाम है इसका 'नैनो' ।
तुरत कराओ बुकिंग भाइयो, प्यारी बहनो ॥
कह जोशी कविराय सड़क पर जगह न मिलती ।
खड़ी रहे घर पर तो भी शोभा बढ़ती ॥

२४ मार्च २००९

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लोकतंत्र का सर्कस - पेट सभी का पापी

(१) पापी पेट

होंगें कहीं विदेश में आइ.पी.एल के मैच ।
वे मारे छक्के वहाँ, यहाँ करें हम कैच ॥
यहाँ करें हम कैच, मची है आपाधापी ।
बन्दर और मदारी पेट सभी का पापी ॥
जोशी कहते लोग-क्रिकेट की साख डुबो दी ।
'पहले धंधा, देश बाद में ' कहते मोदी ॥

(२) धर्म रक्षा के लिए

वे क्रिकेट को मानते हैं भारत का धर्म ।
मैच यहाँ न हुए तो डूब मरें कर शर्म ॥
डूब मरें कर्र शर्म, धर्म के रक्षक सारे ।
क्रिकेट धर्म को लेकर चिंतित है बेचारे ॥
कह जोशी कविराय यहाँ जो ना बच पाये ।
तो ये मज़मा धर्म का अफ़्रीका ले जाएँ ॥

२४ मार्च २००९

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लोकतंत्र का सर्कस - लोकतंत्र की हो रही सोलह दूनी आठ


(१) एक नूर से

इक दूजे की उलटते सभी यहाँ पर खाट ।
लोकतंत्र की हो रही सोलह दूनी आठ ॥
सोलह दूनी आठ, न अल्ला, राघव, माधव ।
ब्रह्मण, बनिया, जात, दलित, मुस्लिम या यादव ॥
कह जोशी कविराय बने सब एक नूर से ।
ऐसी बातें केवल मुँह से, दूर-दूर से ॥

(२) इलाहबाद में परीक्षा में नक़ल न करवाने देने पर सिपाही का नाक काट खाया ।

हमें बताएँ पुलिस की अब रही कहाँ पर धाक ।
नक़ल कराने दी नहीं काट भग गया नाक ॥
काट भग गया नाक, धाक सब ख़ाक हो गयी ।
लेकिन इससे एक बात तो साफ़ हो गई ॥
जोशी ऐसी जगह सिर्फ़ नकटे भिजवायें ।
चले काम सब ठीक सभी से मिलकर खाएँ ॥

२४ मार्च २००९

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लोकतंत्र का सर्कस - ३ सोता आधे पेट पर गंगू तेली रोज

(परसादी लाल मीणा ने पोते के मुंडन पर २०-२५ हज़ार लोगों को भोज में बुलाया)

राजनीति में चल रहे तरह-तरह के भोज ।
सोता आधे पेट पर गंगू तेली रोज ॥
गंगू तेली रोज, अगर आटा मिल जाए ।
तो है महँगी दाल कहाँ से जुगत भिड़ाए ॥
कह जोशी कविराय इ कैसी उलझन लादी ।
देना होगा वोट अगर खाली परसादी ॥

(२)
गीता-पाठ
(प्रियंका ने वरुण को गीता पढ़ने की सलाह दी )

असर यहाँ करता नहीं गीता का उपदेश ।
लेकिन उससे बड़ा है पार्टी का आदेश ॥
पार्टी का आदेश, अगर वि.हि.प. जारी कर दे ।
तो कुलदीपक बापू को भी थप्पड़ धर दे ॥
कह जोशी कविराय क्या हुआ गीता पढ़कर ।
भाई-भाई मरे महाभारत में लड़कर ॥

२४ मार्च २००८

(किसी कारणवश ये रचनाएं पहले पोस्ट नहीं हो पाईं , आशा है विषय की शाश्वत रोचकता के कारण अभी भी आनंद देंगी ।)

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Saturday, April 11, 2009

लोकतंत्र का सर्कस - २

(१)
वे जो करें बिहार में झारखण्ड में आप ।
राजनीति में भोगते सभी यही संताप ॥
सभी यही संताप, राज के खेल निराले ।
यहाँ नहीं होते कोई भी भोले-भाले ॥
कह जोशीकविराय उन्हें बस कुर्सी दीखे
वो हैं लोमड़-बाघ, और हम भेड़ सरीखे ॥

(२)
कांग्रेस में मची है अद्भुत रेलमपेल ।
पासवान को ले भगी लालूजी की रेल ॥
लालूजी की रेल, निभेगी कब तक यारी ।
मतलब की मनुहार अंत में पड़ती भारी ॥
कह जोशीकविराय काम होगा सस्ते में ।
बता बेटिकट कहीं उतारेंगें रस्ते में ॥

(३)
लालूजी के आपस है गाड़ी भरकर घास ।
उसको उतनी डालते जिससे जितनी आस ॥
जिससे जितनी आस, सोनिया को कल डाली ।
पासवान के लिए वही तरकीब निकाली ॥
जोशी रामविलास नहीं उनसे कुछ कम हैं ।
पासवान को बना सके किसमें वह दम है ॥

(४)
जो कुछ संप्रग ने किया अमरसिंह के साथ ।
उसको वो ही मिल रहा है लालू के हाथ ॥
है लालू के हाथ नीति यह कहती आई ।
सबको अपने कर्मों का फल मिलाता भाई ॥
कह जोशीकविराय काठ की है 'गर हंडिया ।
बस चढ़ती इक बार भले हो कितनी बढ़िया ॥

(५)
अनुभव उल्टे हो रहे मान भले न मान ।
लोकतंत्र में बड़ा है हंडिया का स्थान ॥
हंडिया का स्थान, आग पर चढ़ती रहती ।
इस-उस चूल्हे चढ़े मगर ख़ुद कभी न जलती ॥
जोशी भोली जनता झूठी आस लगाये ।
खिचड़ी पकती मगर उसे नेता खा जाएँ ॥

(६)
धनबल-भुजबल के बिना किसको मिलते वोट ।
तो यदि बाँटे वरुण ने तो इसमें क्या खोट ॥
तो इसमें क्या खोट, यही सरकारें करतीं ।
वोट बैंक के खातिर बिजली फ्री में देती ॥
जोशी टीवी बाँटें, दें सस्ते में चावल ।
तब आचार संहिता क्यूँ न होती घायल ॥

(७)
मन मोहन, मायावती, अडवाणी औ पवार ।
लालू के कंधे चढ़े पासवान तैयार ॥
पासवान तैयार, सभी को कुर्सी दिखती ।
गौडा और मुलायम को भी लार टपकती ॥
कह जोशी कविराय भाड़ में जाए सेवा ।
मची हुई है लूट सभी को भावे मेवा ॥

(८)
नीति और साहित्य का कैसा बंटाधार ।
अब कविता में आगये लालू और पवार ॥
लालू और पवार, मुलायम और पासवान जी ।
राम, कृष्ण, गाँधी पर जाता नहीं ध्यान जी ॥
कह जोशीकविराय विकट माया की माया ।
कविता में आदर्शों का हो गया सफाया ॥

(९)
वृक्ष कभी न फल चखें, नदी न पीती नीर ।
परमारथ के वास्ते, साधू धरें शरीर ॥
साधू धरें शरीर, सार को गह लेते हैं ।
पार्टी तो तिनका भूसा सब तज देते हैं ॥
कह जोशी कवि टिकट नहीं देता 'गर पटना ।
चल दिल्ली दरबार सत्य हो जाए सपना ॥

(१०)
चोर अन्य दल में अगर तो है पक्का चोर ।
पल में साधू हो अगर आए अपनी ओर ॥
आए अपनी ओर, विरोधी को तज करके ।
तो लो उसका हाथ थाम आगे बढ़ करके ॥
जोशी साधू औ' शैतान सभी आ जाएँ ।
किसी तरह सत्ता- वैतरणी पार लगायें ॥

२२ मार्च २००९


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