Wednesday, March 31, 2010
योअर नेम इज नोट खान
1.
(राहुल गांधी बिना पूर्व सूचना के मुम्बई की लोकल ट्रेन में घूमे- ५-२-२०१०)
आप घूमते ट्रेन में मुम्बई में बिंदास ।
मगर पंडितों को नहीं घर जाने की आस ।
घर जाने की आस, खायँ दिल्ली में धक्के ।
जन्म भूमि के ख्वाब देखते हक्के-बक्के ।
कह जोशी कविराय - 'देश सबका' तब मानें ।
जब 'पंडित' निर्भय हो घर जाने की ठानें ।
2. गुंडों का राज
कैसे मानें देश में- 'सारे लोग समान' ।
एक सभी का मुल्क है- 'प्यारा हिंदुस्तान' ।
प्यारा हिंदुस्तान, इसे हम तब सच मानें ।
जब 'पंडित' घर लौटें तो सत्ता को जानें ।
कह जोशी कविराय 'राज' वरना गुंडों का ।
बड़े जनों के बिगड़े अपराधी मुंडों का ।
3. फिल्म और बकरा
(महाराष्ट्र सरकार ने 'माई नेम इज खान' रिलीज करवाने के लिए व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए- १२-२-२०१०)
अपनी रक्षा कर स्वयं या फिर भज ले राम ।
जनता की सरकार को और बहुत हैं काम ।
और बहुत हैं काम क्रिकेट का मैच खिलाना ।
औ' 'मई नेम इज खान' प्रदर्शित भी करवाना ।
कह जोशी कविराय बता देना बकरे को ।
अपने बल पर झेलना हर खतरे को ।
4. योअर नेम इज नोट खान
(पाक अधिकृत कश्मीर भाग चुके आतंकवादी भाइयों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की योजना- १६-२-२०१०)
'पंडित' रहकर जा सकें हम अपने घर-बार ।
नहीं दूर तक दीखते इसके कुछ आसार ।
इसके कुछ आसार, 'खान' यदि हम बन जाएँ ।
आतंकी होकर भी मोटा पैकेज पाएँ ।
कह जोशी कविराय जो शिखा-सूत्र रखेंगे ।
काश्मीर में वे ही सदा अछूत रहेंगे ।
5. कायर या मक्कार
कश्मीरी आतंकियों का करती सत्कार ।
कायर है सत्ता यहाँ या फिर है मक्कार ।
या फिर है मक्कार, केंद्र से पैकेज आए ।
जिसको नेता, आतंकी मिल-जुल कर खाएँ ।
कह जोशी कविराय दलाली खुल्ला खाता ।
पैकेज देने में इनके घर से क्या जाता ।
6. बढ़िया मौका
भाग गए थे जो कभी वे सब आएँ लौट ।
सबको देंगे नौकरी, बोरी भरकर नोट ।
बोरी भर कर नोट, न कोई केस चलेगा ।
ऐसा बढ़िया मौका बोलो कहाँ मिलेगा ।
कह जोशी कवि बात 'पंडितों' की ना करते ।
घर से गए निकले जाने कहाँ भटकते ।
7.
भारत देगा नौकरी और प्रशिक्षण पाक ।
सीधे पढ़-लिख छानते शेष मुल्क में ख़ाक ।
शेष मुल्क में ख़ाक, धाक, सर्विस जो चाहें ।
उनको यह संकेत शीघ्र हथियार उठाएँ ।
कह जोशी कवि जो राजा को जूता मारे ।
राजा सादर उसको अपना बाप पुकारे ।
8.
'गर भारत में आप हैं शर्मा, गुप्ता, सिंह ।
तो सत्ता के पास में नहीं है एनीथिंग ।
नहीं है एनीथिंग, अल्पसंख्यक को सब कुछ ।
अगर बदल लो धर्म तभी हो पाएगा कुछ ।
कह जोशी कवि बनो मुसलमाँ या ईसाई ।
मिले वजीफा, सीट मज़े से करो पढ़ाई ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Tuesday, March 30, 2010
स्वामी और हम
दिल्ली और कर्नाटक में स्वामियों के कर्म उजागर- ५-३-२०१०
1. स्वामी और हम
स्वर्ण-महल रावण रहें, बन-बन भटकें राम ।
छः दशकों के राज का हासिल यह परिणाम ।
हासिल यह परिणाम , सेक्स में डूबे स्वामी ।
झूठ-मूठ ही हम गाते- 'मूरख, खल, कामी' ।
कह जोशी कविराय समेटें अपना ढाबा ।
अच्छा हो घर-बार बसा लें ऐसे बाबा ।
2.
ताम-झाम से जानिए धर्म-कर्म का मर्म ।
जितने ज्यादा ठाठ हैं उतने ही दुष्कर्म ।
उतने ही दुष्कर्म, कहाँ से रुपये आते ।
ना पूछे सरकार, न ही बाबा बतलाते ।
जोशी भोजन के बारे में बहुत पढ़ाए ।
मगर संतुलित भोजन टीचर ना कर पाए ।
3.
ए.सी. सारा आश्रम, हैं आयातित कार ।
भूल 'राम' भजते जहाँ बाबा 'पञ्च-मकार' ।
बाबा 'पञ्च-मकार' मद्य की बहती नदियाँ ।
मैथुन-मुद्रा युक्त सर्व करतीं सुन्दरियाँ ।
कह जोशी कविराय स्वर्ग जाकर क्या करना ।
जहाँ अप्सरा मिलें वहीं बाबा को रहना ।
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सीमा-सुरक्षा
1. सीमा-सुरक्षा
(पिछले दो दशकों में चीन ने भारत की बहुत सी ज़मीन हथियाई- एक रिपोर्ट, ११-१-२०१०)
पंद्रह फुट का शेड है, छः फुट की दूकान ।
तिस पर सड़कों पर रखा लाला का सामान ।
लाला का सामान, जहाँ पर भी ये जाएँ ।
धड़ से चार गुनी अपनी टाँगें फैलाएँ ।
जोशी चीनी सीमा पर यदि इन्हें बसा दें ।
तो ये ल्हासा तक अपनी दूकान लगा दें ।
2. ग्लोबल वार्मिंग
(उत्तर भारत में कड़ाके की ठण्ड-१२-१-२०१०)
वे ग्लोबल वार्मिंग कहें, हमें लग रही ठण्ड ।
यह वैज्ञानिक तथ्य है या कोई पाखंड ।
या कोई पाखंड, फेक्ट्री नहीं लगाएँ ।
ठीक पुरानी करने की तकनीक ले जाएँ ।
जोशी तो फिर कैसे अपना काम चलेगा ।
फ़िक्र नहीं, सब योरप-अमरीका भेजेगा ।
3. चिक-चिक करके
(महँगाई पर सोनिया चिंतित- २१-१-२०१०)
काम करो ना करो पर करो काम की फ़िक्र ।
फ़िक्र करो ना करो पर करो फ़िक्र का ज़िक्र ।
करो फ़िक्र का ज़िक्र, बढ़े जनता की हिम्मत ।
औ' लग जाए आस, घटेगी अब तो कीमत ।
जोशी सहते-सहते जनता सह जाएगी ।
थोड़े दिन चिक-चिक करके फिर रह जाएगी ।
4. राम की सीमा
(इंदौर में तम्बुओं में भाजपा का अधिवेशन- १८-२-२०१०)
मंदिर तक सीमित हुए पुरुषोत्तम श्री राम ।
आदर्शों के राम से नहीं किसी को काम ।
नहीं किसी को काम, यहाँ तम्बू थे ए.सी. ।
ऐसे करते महँगाई की ऐसी-तैसी ।
कह जोशी कविराय हमारी हालत पतली ।
आप खा रहे अधिवेशन में भुट्टा-इमली ।
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