Sunday, December 26, 2010
नौटंकी
(किसी भ्रष्ट को नहीं बख्शेंगे-मनमोहन, एन.डी.ए.की दिल्ली में महासंग्राम रैली-२२-१२-२०१०)
सब नौटंकी कर रहे, सभी बजाते गाल |
कहो हुआ किस भ्रष्ट का अब तक बाँका बाल |
अब तक बाँका बाल, बचाओगे तुम जिसको |
कल संकट आने पर वही बचाए तुमको |
जोशी मौसेरे भाइयों में रिश्तेदारी |
बेचारी जनता को पेलें बारी-बारी |
२३-१२-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
ग्लोबल गाँव में भारत
(पाकिस्तान से प्याज का आयात-२१-१२-२०१०)
एक गाँव जैसी हुई दुनिया सचमुच आज |
तोगड़िया की प्लेट में पाकिस्तानी प्याज |
पाकिस्तानी प्याज,चीन से लहसुन आए |
जिसकी चटनी आयातित रोटी सँग खाएँ |
जोशी मोबाइल से मुट्ठी में हो दुनिया |
पर अधभूखे कब तक 'चैट' करोगे भैया |
२४-१२-२०१०
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Tuesday, December 21, 2010
इतिहास के पन्नों से प्याज की दुहाई
इतिहास को दुहराने में बीस नहीं सिर्फ १२ साल लगते हैं !
१९९८ की लिखी हुई कुण्डलियाँ आज फिर सन्दर्भ में है ।
पाँच दशक में हो गया सारा राज सुराज ।
घुसी तेल में 'ड्राप्सी', दुर्लभ आलू-प्याज ।
दुर्लभ आलू-प्याज, दूध पानी से सस्ता ।
पतली होती कभी तो कभी हालत खस्ता ।
कह जोशी कविराय देखना नई सदी में ।
मछली बचे न एक, ग्राह ही ग्राह नदी में ।
(मुज़फ्फरनगर के पास लोगों ने प्याज से भरा एक ट्रक लूटा- २८-८-१९९८)
जैसा जिसका मर्ज़ है वैसा करे इलाज ।
आप लूटते मज़े औ' लोग लूटते प्याज ।
लोग लूटते प्याज, उतरेंगे कल छिलके ।
ए मेरी सरकार! रहें अब ज़रा संभल के ।
कह जोशी कविराय भले ही अणुबम फोड़ें ।
पर भूखों के लिए प्याज-रोटी तो छोड़ें ।
(प्याज की कीमत एन सप्ताह में ६० रुपये किलो होने की संभावना- ८-१०-१९९८ )
जैसा-छिलके देह है, रोम-रोम दुर्गन्ध ।
सात्विक जन के घरों में था इस पर प्रतिबन्ध ।
था इस पर प्रतिबन्ध, बिका करता था धड़ियों ।
अब दर्शन-हित लोग लगाते लाईन घड़ियों ।
कह जोशीकविराय दलित-उद्धार हो गया ।
कल का पिछड़ा प्याज आज सरदार हो गया ।
(समन्वय समिति की मीटिंग में प्याज का मुद्दा छाया रहा- ९-१०-१९९८)
व्यर्थ मनुज का जन्म है नहीं मिले 'गर प्याज ।
रामराज्य को भूलकर, लायँ प्याज का राज ।
लायँ प्याज का राज, प्याज की हो मालाएँ ।
छोड़ राष्ट्रध्वज सभी प्याज का ध्वज फहराएँ ।
कह जोशी कविराय स्वाद के सब गुलाम हैं ।
सभी सुमरते प्याज, राम को राम-राम है ।
आसमान में चढ़ गए तुच्छ प्याज के दाम ।
साहिब सिंह से अटल तक सब की नींद हराम ।
सब की नींद हराम, तेल-फेक्ट्री में जाओ ।
ड्राप्सी वाला वो ही नुस्खा लेकर आओ ।
कह जोशी कविराय ड्राप्सी 'गर हो जाये ।
कीमत आपने आप प्याज की नीचे आये ।
(प्रधान मंत्री ने केबिनेट सचिव से प्याज की कीमतें घटाने के उपाय सुझाने को कहा-८-१०-१९९८)
साठ रुपय्या प्याज है, बीस रुपय्या सेव ।
कैसा कलियुग आ गया हाय-हाय दुर्दैव ।
हाय-हाय दुर्दैव, हिल उठी है सरकारें ।
बिना प्याज के लोग जन्म अपना धिक्कारें ।
कह जोशी कविराय प्याज का इत्र बनाओ ।
इज्ज़त कायम रहे मूँछ पर इसे लगाओ ।
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