Saturday, November 14, 2009
दस्ताने
जब दस्तानों से ही हाथ मिलाना है ।
तो फिर क्यों चलकर उनके घर जाना है ॥
अपनी आँखे बिछी रहेंगी रस्ते पर
वे अपनी जानें- आना, ना आना है ॥
कहीं पियो मन्दिर, मस्जिद, मैखाने में
नशा एक है जुदा-जुदा पैमाना है ॥
हमको सबका नशा अधूरा लगता है
सबने, सबको अलग-अलग पहचाना है ॥
चार धाम औ' हज़ सब कर आए लेकिन
जो घर में बैठा है वह अनजाना है ॥
३१-१०-२००९
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Joshi Kavi
Subscribe to:
Posts (Atom)