Thursday, March 19, 2009

लोकतंत्र का सर्कस - १


(१)
अपना मानेंगें किसे, किसका हो विश्वास ।
छोड़ सोनिया को भगे, लालू, रामविलास ॥
लालू रामविलास, जिधर जब घास दिखेगी ।
मौसेरे भाइयों की जोड़ी वहीं मिलेगी ॥
कह जोशी कविराय लोग, दल आते-जाते ।
नहीं किसी का कोई सब मतलब के नाते ॥

(२)
वरुण फँस गए झाड़कर भड़काऊ स्पीच ।
जिसको भी मौका मिले टाँग रहा है खीच ॥
टाँग रहा है खींच, फूल किस मुख से झरते ।
सब अपनी-अपनी शैली में गाली बकते ।
जोशी निर्वाचन आयोगी चुप क्यों रहते ।
तिलक, तराजू के ऊपर जब जूते पड़ते ।

(३)
लोकतंत्र में आगये कैसे दिन भगवान ।
नैया पार लगायेंगें काका और रहमान ॥
काका और रहमान, पढ़ें कविता औ' गायें ।
ये उनकी पैरोडी पर चीखें-चिल्लाएँ ॥
कह जोशी कविराय जो मन से सेवा करता ।
उसे लोक कुर्सी पर क्या दिल में भी रखता ॥

(४)
लोकतंत्र की सज रही है अद्भुत बारात ।
कुर्सी दुल्हन एक है लेकिन दूल्हे सात ॥
लेकिन दूल्हे सात, अजब है गड़बड़ झाला ।
असमंजस में है दुल्हन किसको डाले माला ॥
कह जोशी कविराय यही इतिहास बताये ।
हर द्रुपदा के पाँच-पाँच पति होते आए ॥

१९ मार्च २००९

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Tuesday, March 17, 2009

सुख-सागर

सुखराम जी को सज़ा सुनादी गई है । उनके घोटाला उद्घाटन-काल की कुछ कुण्डलियाँ पुनरावलोकन के लिए प्रस्तुत हैं ।

सुखराम के घर सी.बी.आई. के छापे; तीन करोड़ नक़द मिले, एक समाचार-१६-८-९६

लन्दन में सुखराम जी करवा रहे इलाज़ ।
घर में घुस कर खोलती सी.बी.आई. राज़ ॥
सी.बी.आई. राज,आ गया कलजुग भारी ।
जनसेवक को बता रहे हैं भ्रष्टाचारी ॥
कह जोशी कविराय नहीं कुछ काला धंधा ।
कहो कौन करता जग में सेवा, बिन चन्दा ॥

सौ करोड़ के देश में केवल चार करोड़ ।
रखने पर सुखराम के बाजू रहे मरोड़

बाजू रहे मरोड़, होड़ सी लगी हुई है ।
धन-संग्रह की तृष्णा सब में जगी हुई है

कह जोशी कविराय तलाशी करवाएंगें ।
छुट भैयों के घर में इतने मिल जायेंगें


बिन मेहनत के ही अगर घर में आयें दाम ।
सारे 'सुख' हों भले ही मगर नहीं हैं 'राम'

मगर नहीं हैं 'राम', धर्म औ कर्म छोड़कर ।
सिर्फ़ भोग का आराधन चल रहा निरंतर

कह जोशी कविराय मुक्त हैं काले धंधे ।
पीछे छूटा देश बढ़े आगे कुछ बन्दे




सुखराम अस्पताल में अपना समय बिताने और ईश्वर में ध्यान लगाने के लिए माला जपेंगे - १७-९-९६

जब तक रिश्वत खा रहे, भोग रहे आराम ।
तब तक क्षणभर के लिए याद न आए राम

याद न आए राम, लगी जब सी.बी.आई. ।
राम-नाम की माला जपने की सुध आई

कह जोशी कविराय सिर्फ़ दुःख में जो भजते ।
ऐसों की फरियाद रामजी कभी न सुनते


मुझे बदनाम कराने के लिए चोरी-छिपे रकम मेरे घर में रखी गई -सुखराम, ८-१०-९६

कोई रुपये रख गया करने को बदनाम ।
लेकिन सच्चे संत हैं पंडित श्री सुखराम

पंडित श्री सुखराम, ज़रा भी ना ललचायें ।
पर-धन धूरि समान, हाथ तक नहीं लगाएँ

कह जोशी कविराय विप्र सीधे, संतोषी ।
जनता ही है दुष्ट बताती उनको दोषी


खुला निमंत्रण आपको अपना रहा ज़नाब ।
बड़े शौक से कीजिए छवि को मेरी ख़राब

छवि को मेरी ख़राब, नोट जितने जी चाहें ।
खुला पड़ा है गेट आप आकर रख जाएँ

कह जोशी कविराय करो माया पर काबू ।
ख़ुद ही सुख और राम चले आयेंगे बाबू




जेल में सुखराम को डेंगू का डर सता रहा है -१२-१०-९६

नेताओं ने कर दिए खाली कई मकान ।
कूलर खाली न करे मच्छर बेईमान

मच्छर बेईमान, कोठरी में मंडराए ।
पंडित जी की पूजा में बाधा पहुँचाये

कह जोशी कविराय नोट जिसने रखवाए ।
'एडिस' मच्छर भेज आपको वही डराए



ताज़ा हाल

सुख-सागर से डर गए रहे किनारे बैठ ।
कैसे पायेंगे भला सच को गहरे पैठ

सच को गहरे पैठ, यहाँ की जनता भोली ।
दो दिन पढ़ अख़बार सोचती मारो गोली

कह जोशी कविराय हमारा कहा मानिए ।
बैक डेट से उलट-पलटकर हाल जानिए



अब तो अस्सी पार हैं तन-मन से असमर्थ ।
ऐसे में इस सज़ा का बोलो क्या है अर्थ

बोलो क्या है अर्थ, जेल यदि भेजें जाएँ ।
इसकी क्या गारंटी सज़ा पूरी कर पायें

कह जोशी कविराय सज़ा यदि देना चाहो ।
ब्याज सहित सारे पैसे वापिस मंगवाओ


२६ फरवरी २००९

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लाला का डी.ए.


(छः प्रतिशत डी.ए. की घोषणा)

छः प्रतिशत डी.ए.बढ़ा, धन्यवाद श्रीमान ।
दस प्रतिशत दुर्लभ हुई, राशन की दूकान ।
राशन की दूकान, वस्तुएं आगे-आगे ।
पीछे-पीछे हम औ' डी.ए.भागे-भागे ।
जोशी हमें बनाना उल्लू छोड़ दीजिये ।
डी.ए. लाला के खाते में जोड़ दीजिये ।

२७-२-२००९

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मुँह पर पट्टी


(राजस्थान विधान सभा में भाजपा सदस्यों ने मुँह पर पट्टी बाँध कर विरोध प्रदर्शन किया २६-२-२००९)

हम तो बांधें पेट पर, मुँह पर पट्टी आप ।
जनता नेता भोगते, अपने-अपने पाप ।
अपने-अपने पाप, आपने हमें धुन दिया ।
औ' हम इतने मूर्ख कि, आपको पुनः चुन लिया ।
कह जोशी कविराय, आपके मुँह पर पट्टी ।
इधर हो रही गुम जनता की सिट्टी-पिट्टी ।

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